नई दिल्ली । मणिपुर में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त तीन महिला न्यायाधीशों वाली समिति ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष 3 रिपोर्ट पेश की हैं, जिसमें महत्वपूर्ण पहचान दस्तावेजों को फिर से जारी करने, मुआवजा योजना के उन्नयन की जरूरत पर जोर दिया गया है और इसके कामकाज को सुविधाजनक बनाने के लिए डोमेन विशेषज्ञों की नियुक्ति की सिफारिश की है।
सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने याचिकाकर्ताओं और केंद्र और मणिपुर सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को सुझाव के लिए इन रिपोर्टों को प्रसारित करने का आदेश दिया। पीठ ने निर्देश दिया कि सुझावों का संकलन अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर करेंगी। वे इन्हें मणिपुर राज्य के महाधिवक्ता के साथ साझा करेंगी।
संक्षिप्त सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत द्वारा नियुक्त समिति ने तीन रिपोर्ट दायर की हैं। पहली रिपोर्ट इस तथ्य पर प्रकाश डालने वाली हैं कि मणिपुर के कई निवासियों ने हिंसा में अपने आवश्यक दस्तावेज खो दिए हैं। रिपोर्ट में आधार कार्ड आदि के पुनर्निर्माण में सहायता की मांग की गई है, दूसरी रिपोर्ट मणिपुर पीड़ित मुआवजा योजना को एनएएलएसए (राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण) के अनुरूप लाने के लिए उन्नत करने की जरूरत है। तीसरी रिपोर्ट अपने कामकाज को सुविधाजनक बनाने के लिए डोमेन विशेषज्ञों की नियुक्ति का प्रस्ताव रखा गया है।शीर्ष अदालत ने कुछ प्रक्रियात्मक निर्देश पारित करने के लिए याचिकाओं के समूह को 25 अगस्त को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने तीन महिला न्यायाधीशों, पूर्व मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल, शालिनी फणसलकर जोशी और आशा मेनन की एक समिति गठित की थी। इसने समिति को मणिपुर में महिलाओं के खिलाफ हिंसा से संबंधित जानकारी एकत्र करने के साथ-साथ राहत शिविरों की स्थितियों की निगरानी करने और पीड़ितों को मुआवजे पर निर्णय लेने का काम सौंपा था।समिति को हिंसा के पीड़ितों को मुआवजा और मुआवजा देने का काम सौंपा गया है। समिति राज्य सरकार को हिंसा से प्रभावित व्यक्तियों की चल और अंचल संपत्तियों को हुए नुकसान के मुआवजे का निपटान करने के निर्देश जारी कर सकती है।