रायपुर ।    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले को बरकरार रखा है। पांच जजों की संविधान पीठ ने इस मामले पर सुनवाई की। इस बीच छत्तीसगढ़ के प्रोफेसर डा. भूपेंद्र करवंदे का अध्ययन कार्य भी चर्चित हो रहा है। प्रोफेसर करवंदे ने अपनी पीएचडी अध्ययन कार्य में अनुच्छेद 370 को हटाने का सुझाव दिया था और उन्होंने इस प्रविधान को अस्थायी बताया था, जिस पर सुप्रीम कोर्ट की भी मुहर लग गई है। अनुच्छेद 370 अब इतिहास बन चुका है। केंद्र सरकार ने पांच अगस्त, 2019 को जम्मू और कश्मीर से संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाने के लिए एक बिल को संसद से पेश किया था, जिसे मंजूरी मिलने के बाद अनुच्छेद 370 निरस्त हो गया। यहां बताना लाजिमी होगा कि डा. भूपेंद्र करवंदे का पीएचडी अध्ययन कार्य भी केंद्र सरकार के इस साहसी फैसले के महज छह महीने पहले पूरा हुआ। जिस अनुच्छेद 370 पर लोग बोलने में कतराते थे उस समय प्रोफेसर करवंदे ने इस पर अध्ययन कर कानूनविद के रूप में महती भूमिका निभाई।

जम्मू-कश्मीर से संविधान सभा शब्द को हटाकर उसे राज्य की विधानसभा घोषित करने के लिए करवंदे ने केंद्र सरकार के फैसले के पहले 2018 में ही अपने सुझाव दे दिए थे। सुझाव के मुताबिक संविधान के अनुच्छेद 370 के खंड तीन से संविधान सभा शब्द को हटाकर राज्य की विधानसभा करने की सिफारिश की गई थी। डा. करवंदे छत्तीसगढ़ जे. योगानंदम कालेज रायपुर के विधि विभाग में कार्यरत हैं । उन्होंने 'आर्टिकल 370 आफ कंस्टीट्यूशन आफ इंडिया फैक्ट इशू एंड साल्यूशन(इन स्पेशल रिफ्रेरेंस आफ जम्मू एंड कश्मीर) विषय पर अपनी पीएचडी पूरी की है।

जम्मू-कश्मीर के बारे में अस्थाई प्रविधान

डा. करवंदे ने बताया कि हमने अध्ययन में पाया कि कश्मीर में बेरोजगारी, दोहरी नागरिकता, दो संविधान, स्थानीय सरकार का पूर्ण नियंत्रण न होने से समस्या बढ़ी । वहां सुरक्षा पर सबसे अधिक खर्च भी किया जा रहा था। हमने अनुच्छेद 370 और 35 ए हटाने को लेकर सुझाव दिया था। उन्होंने बताया कि 26 अक्टूबर 1947 को कश्मीर के मामले में जारी अधिमिलन पत्र में जम्मू कश्मीर को लेकर इस रियासत के राजा हरिसिंह शामिल हुए थे। जम्मू-कश्मीर के बारे में अस्थाई प्रविधान है जिसको या तो बदला जा सकता है या फिर हटाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने इसी पर मुहर लगाई है।

इन समस्याओं पर किया था फोकस

कश्मीर की समस्या राजनीतिक न होकर संवैधानिक है।
संवैधानिक संकटों के कारण वहां बेरोजगारी हावी है।
युवाओं के विकास और बेहतर रोजगार के लिए संविधानिक समस्या हटाना होगा।
इलाके में संवैधानिक समस्या से रोजगार के साधन नहीं बढ़ पाए हैं।
यहां न कोई निवेश की गुंजाइश और न ही कोई रोजगार के नए साधन।
निवेश और उद्योग नहीं होने से बेरोजगारी की समस्या ज्यादा।