लखनऊ । उत्तर प्रदेश की राजनीति में फिर माहौल गरमा रहा है। ओम प्रकाश राजभर को लेकर पिछले दिनों से लगातार चर्चाओं का दौर चल रहा है। राजभर स्वयं आगे आकर उन कयासों पर विराम लगाने की कोशिश करते हैं और फिर एक नई चर्चा शुरू हो जाती है। ताजा जानकारी सामने आ रही है, वह राजभर के दावों के उलट दिख रही है। दावा किया गया है कि सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष राजभर की दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात हुई है। इस मुलाकात के कई मायने निकाले जा रहे हैं। दावा यहां हैं कि राजभर की योगी सरकार में फिर वापसी हो सकती है। हालांकि, इन कयासों पर अभी तक राजभर का कोई बयान नहीं आया है। जब तक उनकी ओर से कुछ नहीं कहा जाता है, तब तक कुछ भी दावा जल्दबाजी होगी। 
राजभर और शाह की मुलाकात की खबरों के बाद लखनऊ का राजनीतिक माहौल गरमाने लगा है। दरअसल, पिछले दिनों दावा किया गया था कि राजभर 18 जुलाई को दिल्ली में होने वाली एनडीए दलों की बैठक में शामिल हो सकते हैं। बाद में राजभर ने इन तमाम दावों को खारिज करते हुए कहा, हम किसी के साथ भी मिल सकते हैं। कहीं भी जा सकते हैं। हमारी राजनीतिक ताकत को हर किसी ने माना है। हालांकि, उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन को लेकर स्थिति साफ नहीं की थी। उनके बेटे अरविंद राजभर की ओर से कहा गया कि जब कोई न्यौता  मिला ही नहीं है, तब ओम प्रकाश राजभर बैठक में क्यों जाएंगे? हालांकि, अब उनका बेटे के साथ केंद्रीय गृह मंत्री से मुलाकात का मामला गरमा गया है।
राजभर को लेकर दावा हो रहा हैं, कि दिल्ली में राजनीतिक मुलाकातों के बाद वे भाजपा के करीब आ सकते हैं। अगर राजभर भाजपा के साथ आते हैं, तब योगी आदित्यनाथ सरकार में उनकी वापसी हो सकती है। उन्हें भाजपा योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री का दर्जा दे सकती है। वर्ष 2017 की योगी सरकार-1 में ओम प्रकाश राजभर ने मंत्री पद की शपथ ली थी। उस दौरान उन्हें राज्य मंत्री बनाया गया था। हालांकि, अबकी बार साथ आने की स्थिति में उन्हें प्रमोशन मिल सकता है। पिछले दिनों राजभर की यूपी के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक से मुलाकात हुई थी। वहीं, उनके बेटे अरुण राजभर की शादी में यूपी भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी पहुंचे थे। साथ ही, पिछले दिनों राजभर के सुर में काफी बदलाव दिख रहा है।
राजभर ने पिछले दिनों लगातार विरोधी नेताओं को निशाना बनाया। साथ ही, वे तमाम राजनीतिक दलों के साथ रहते दिखे हैं। मायावती, भाजपा से लेकर अखिलेश यादव के साथ रहने और छोड़ने का उनका इतिहास रहा है। 2017 के चुनाव में वे भाजपा के साथ आए। लेकिन, यह साथ अधिक दिनों तक नहीं चल पाया। इसके बाद उन्होंने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया। अखिलेश यादव के साथ गठबंधन कर उन्होंने पूर्वांचल में भाजपा को खासा नुकसान पहुंचाया। लेकिन, चुनाव परिणाम में सपा को आशातीत सफलता नहीं मिलने के बाद वे अखिलेश पर हमला बोलना शुरू कर दिया। विपक्ष को एकजुट करने की बात कही। मायावती को साधने की कोशिश की। सफलता नहीं मिली।