इस बार होली 25 और 26 मार्च को मनाई जाएगी. वहीं रंग उत्सव का पर्व 26 मार्च को मनाया जाएगा. इसपर विशेष जानकारी देते हुए पंडित मनोत्पल झा ने लोकल 18 को बताया कि होलिका दहन होने के बाद ही रंगोत्सव यानी होली का पर्व खुशी से मनाया जाता है. होलिका दहन में कई चीजों का खास ख्याल रखना जरूरी होता है. खासकर नव विवाहिता दुल्हन को इसका खास ख्याल रखना चाहिए. उन्होंने कहा कि होलिका दहन होली की पहली सीढ़ी होती है, जिसके बाद रंग उत्सव का पर्व मनाया जाता है. होलिका दहन होली के दिन पूर्व मध्य रात्रि को मनाया जाता है. इस दिन लोग अपने घरों से जलावन ले जाकर होलिका दहन करते हैं. लेकिन नई दुल्हन को होलिका दहन नहीं देखना चाहिए.

नव विवाहिता को होलिका दहन देखना वर्जित
शास्त्रों में नव विवाहित दुल्हन को होलीका दहन देखना वर्जित माना गया है. इसका कारण बताते हुए पंडित मनोत्पल झा ने Local 18 से कहा कि होलिका की शादी होते ही उसे आग के हवाले कर दिया गया था, जिसके बाद उनकी समाप्ति हो जाती है. इसके बाद उनकी दूसरी शादी करने के लिए आए राक्षस वापस लौट जाते हैं. यानि एक शादी होते ही उसी रात होलिका चिता में जल जाना एक दुर्भाग्यपूर्ण बात माना जाता है. इसलिए शास्त्रों के मुताबिक नव विवाहिता महिलाएं और नव दुल्हन को होलिका दहन देखना वर्जित माना गया है.

बुराई पर अच्छाई के जीत का प्रतीक है होली
पंडित मनोत्पल झा आगे कहते हैं कि होली निष्ठा, विश्वास और धर्म का प्रतीक है. बुराई पर अच्छाई की प्रतीक होली को हमलोग हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं. उन्होंने कहा कि होली पूर्णिया जिला के बनमनखी के धरहरा से हुई थी. यहां पर भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद को हिरणकश्यप जैसे राक्षस से बचाने के लिए स्वयं अवतार लिया था और अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की थी. जिसकी कई निशानियां अभी इस मंदिर में साक्ष्य के तौर पर मौजूद हैं.