तेलअवीव। सात अक्टूबर से हमास और इजराइल आमने सामने हैं। इस संघर्ष में अभी तक 4000 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। संयुक्त राष्ट्र की कोशिशें नाकाम हो गई हैं। इजराइल गाजा पट्टी पर हमला करने के लिए अड़ा हुआ है। उधर 22 इस्लामिक देश हमास के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। लेबनान और सीरिया के रास्ते हमास का हथियार मुहैया कराया जा रहा है। वहीं अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी आदि कई देश इजराइल को सैन्य सामग्री उपलब्ध करा रहे हैं। इससे यह युद्ध विकराल रूप लेता जा रहा है। इस युद्ध के कारण जिस तरह विश्व दो खेमों में बंटता जा रहा है उससे तृतीय विश्वयुद्ध का खतरा मंडराने लगा है।
इजराइल पर हमास की ओर से हमला शुरू किए अब 10 दिन हो चुके हैं। इस हमले की वजह से इजराइल में अब तक 1400 लोगों की जान जा चुकी है। दूसरी तरफ इजराइल की तरफ से गाजा पट्टी पर किए गए पलटवार में मौतों का आंकड़ा अब 2700 से अधिक पहुंच चुका है। यह स्थिति तब है, जब इजराइल की ओर से गाजा पर सिर्फ हवाई हमले किए गए हैं। बताया गया है कि इजराइल सेना जल्द ही गाजा पर समुद्र और जमीनी मार्ग से भी हमला कर सकती है। इन स्थितियों के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने इजराइल को सतर्क रहने और गाजा में किसी तरह के कब्जे को गलत करार दिया है। इजराइल ने लेबनान से सटी अपनी सीमा से नागरिकों को हटाना शुरू कर दिया है। बताया गया है कि वह देश के उत्तर में लेबनान की सीमा से दो किलोमीटर अंदर तक के इलाके में रहने वाले 28 समुदायों को हटा रहा है और उन्हें सुरक्षित इलाकों में सरकारी गेस्ट हाउस में रखना शुरू कर रहा है। गौरतलब है कि इजराइल पर बीते कुछ दिनों में गाजा पट्टी के अलावा लेबनान की तरफ से भी रॉकेट दागे गए हैं। इजराइल का कहना है कि यह हमले ईरान समर्थित हिज्बुल्ला संगठन की ओर से किए गए हैं और इनका माकूल जवाब भी दिया जा रहा है। ऐसे में इजराइल का ताजा कदम हिज्बुल्ला के लिए चेतावनी के तौर पर देखा जा रहा है।
हमास और इजराइल के बीच चल रहे युद्व के चलते दोनों ओर मानवीय संकट उत्पन्न हो गया है। लोग अपना घरबार छोडक़र राहत कैम्पों में रहने को मजबूर हैं। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका पर एक बार फिर सवाल उठने लगे हैं। दरअसल, यूएन और डब्ल्यूएचओ का हमास के प्रति हमदर्दी दिखाने को लेकर यूएन में इजराइली राजदूत गिलाद एर्दान ने सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा कि यूएन के अधिकारियों के पास आतंकवाद के खिलाफ लड़ रहे देश को फटकार लगाने की कोई विश्वसनीयता नहीं है। हालांकि, रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद भी वैश्विक संस्था की विश्वसनीयता को कठघरे में खड़ा किया गया था। ऐसे में हमें जानना चाहिए कि आखिर हमास-इस्राइल युद्ध के बाद यूएन पर सवाल क्यों उठे? लड़ाई शुरू होने के बाद यूएन और उसके संगठनों ने क्या कदम उठाए हैं? रूस-यूक्रेन संघर्ष में इसकी भूमिका पर आंच क्यों आई? यूएन की जिम्मेदारी होती क्या है? यह किसलिए बना था? क्या इतिहास में भी यूएन अपनी जिम्मेदारियों से चूका?