जिनेवा । दुनिया में कोरोना के मामले अभी थमे नहीं थे, तभी मंकीपॉक्स ने अपना पैर पसारना शुरू कर दिया। मई में इसका पहला मामला सामने आया था, इसके बाद अब यह 89 अन्य देशों में फैल चुका है। डब्ल्यूएचओ कई दिन से मंकीपॉक्स का नाम बदलना चाह रहा था, क्योंकि लोगों को लग रहा है कि यह बीमारी बंदरों द्वारा फैल रही है, इसके बाद बंदरों को अब निशाना बनाया जाने लगा है।
 डब्ल्यूएचओ  ने सांस्कृतिक और सामाजिक अपराध से बचने के लिए मंकीपॉक्स वायरस को दो अलग-अलग समूहों में विभाजित कर दिया जिसका नाम दिया-क्लैड-1 और क्लैड -2 कर दिया। विशेषज्ञ अब मध्य अफ्रीका में पूर्व कांगो बेसिन क्लैड को ‘क्लैड-1’ और पूर्व पश्चिम अफ्रीकी क्लैड को ‘क्लैड-2’ के रूप में दुनिया के सामने संदर्भित करने वाले हैं।
 डब्ल्यूएचओ ने बताया क्लैड आईआईबी में 1970 के दशक में और 2017 के बाद के वायरस शामिल है। क्लैड दो के दो उप-वर्ग, आईआईए और आईआईबी थे। जिन्हे वैश्विक प्रकोप का कारण माना जा रहा है। विशेषज्ञों ने जीनोम को देखते हुए बताया कि मौजूदा प्रकोप और पुराने क्लैड आईआईबी वायरस में काफी अंतर है और इन परिवर्तनों के महत्व के बारे में अभी कोई जानकारी नहीं है इसलिए इन उत्परिवर्तनों के प्रभावों को जानने के लिए शोध जारी है।
मंकीपॉक्स को इसका नाम इसकारण मिला, क्योंकि इस वायरस की पहचान मूल रूप से 1958 में डेनमार्क में शोध के लिए रखे गए बंदरों में हुई थी और अब ब्रिटेन से कई ऐसे मामले आए हैं जिसमें बंदरों को जहर देकर मारा जा रहा है इसलिए विश्व स्वास्थ संगठन की प्रवक्ता मार्गरेट हरिस ने कहा, ‘मंकीपॉक्स जानवरों से इंसानो में फैल सकता है, लेकिन इसके लिए बंदरों को जिम्मेदार नहीं ठराया जाना चाहिए।