नई दिल्ली । प्रतिष्ठित औलंपिक टोक्यो स्पर्धा में जर्मनी के विरुद्ध कांस्य पदक के मुकाबले में पेनल्टी पर गोल बचाकर 41 साल बाद ओलंपिक पदक दिलाने वाले भारत के स्टार गोलकीपर पीआर श्रीजेश ने कहा कि उस पल उनका 21 साल का करियर उनकी आंखों के सामने घूम गया। भारत के पूर्व कप्तान 33 वर्ष के श्रीजेश हाल ही में वर्ल्ड गेम्स एथलीट का पुरस्कार जीतने वाले दूसरे भारतीय बने।  श्रीजेश ने जर्मनी के खिलाफ पेनल्टी कॉर्नर पर गोल बचाकर भारत का कांस्य पदक सुनिश्चित किया।  दिग्गज गोलकीपर पीआर श्रीजेश ने कहा, ‘मैच खत्म होने से 6 सेकंड पहले पेनल्टी कॉर्नर गंवाने से मैं भी हर हॉकी प्रेमी की तरह दुखी था क्योंकि जर्मनी मैच का पासा पलटने में माहिर है। हमने पहले भी मैच के आखिरी पलों में गोल गंवाए हैं और वे सब यादें ताजा हो गई लेकिन मैं जानता था कि मुझे फोकस बनाए रखना है। मैंने सभी को उनकी जिम्मेदारी सौंपी क्योंकि इतने दबाव में अपनी जिम्मेदारी पर फोकस बनाए रखना मुश्किल होता है।’ उन्होंने कहा, ‘वह गोल बचाने और मैं जीतने के बाद मैं भावुक हो गया। मेरी आंखों के सामने 21 साल का मेरा सफर घूम गया। जीवी राजा स्पोर्ट्स स्कूल से लेकर टोक्यो ओलंपिक तक का सफर।’ इस सफर में 2017 के दौरान एसीएल चोट के कारण उनका कैरियर खत्म होने की कगार पर पहुंच गया था। 
उन्होंने कहा, ‘चोट से निपटना मेरे लिए सबसे कठिन था क्योंकि उस समय मेरा करियर चरम पर था। मैं भारतीय टीम का कप्तान था और अच्छा खेल रहा था।  लोग मुझे पहचानने लगे थे।’ श्रीजेश ने कहा, ‘मेरे लिए हॉकी सबसे अहम है और चोट लगने के बाद भी मेरी अनुपस्थिति में भारतीय टीम अच्छा खेल रही थी। मुझे लगा कि लोग मुझे भूल रहे हैं। मेरे लिए वह कठिन समय था लेकिन उस अनुभव से मुझमें परिपक्वता आई और मैं वापसी कर सका।’ उन्होंने कहा, ‘भारत में उम्र काफी नाजुक मसला है और चोट के साथ बढ़ती उम्र के कारण लोग मुझे चुका हुआ मानने लगे। विश्व कप-2018 के दौरान लोगों ने काफी आलोचना की। मेरे पिता भी उस समय काफी बीमार थे तो मेरे लिए वह बहुत कठिन दौर था।  मैंने हॉकी से संन्यास लेने के बारे में भी सोचा। मैं नीदरलैंड के गोलकीपर याप स्टॉकमैन का शुक्रगुजार हूं जिनकी सलाह से मैं उस दौर से निकल सका।’