नई दिल्ली । कांग्रेस नेता राहुल गांधी की अध्यक्ष के रुप में वापसी को लेकर पार्टी में एक वर्ग तैयारी में जुट गया है। राहुल की वापसी को लेकर उनके समर्थकों का तर्क है कि 137 साल पुरानी पार्टी ने पिछले दशक (2012-22) में केवल 2018 में अच्छा प्रदर्शन किया था, जिस साल राहुल गांधी ने अध्यक्ष के रूप में कार्य किया था। गौरतलब है कि, 2018 में कांग्रेस ने राहुल गांधी के पार्टी अध्यक्ष रहते राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज की थी और भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से बेदखल किया था।
 हालांकि, मध्य प्रदेश में 15 महीने सरकार चलाने के बाद कांग्रेस पार्टी में टूट की वजह से भाजपा फिर सत्ता में वापस आ गई। एक रिपोर्ट के मुताबिक कांग्रेस के जो नेता अध्यक्ष के रूप में राहुल गांधी की वापसी चाहते हैं, उनका तर्क है कि 2018 वह एक साल था जब पार्टी ने तीन राज्यों के चुनाव जीते। उनके मुताबिक इस साल अच्छे निर्णय लिए गए और जल्दी से उनका क्रियान्वित हुआ, और पार्टी ने मोदी-शाह के नेतृत्व वाली भाजपा को चुनौती देने के लिए अच्छी तरह से काम करना शुरू कर दिया। 
हालांकि, इन नेताओं के तर्क से हर कोई आश्वस्त नहीं है। लेकिन राहुल गांधी के विश्वासपात्र इन नेताओं का कहना है कि फिर से 2018 वाली टीम बनाने के लिए उनके तर्क को चुनौती देना कठिन है और वे पार्टी में होने वाले आंतरिक चुनावों से पहले विभिन्न प्लेटफार्मों पर इस विषय को उठा रहे हैं।कांग्रेस की डेटा और एनालिटिक्स टीम के प्रमुख प्रवीण चक्रवर्ती के हवाले से कहा है, ‘यह एक निर्विवाद तथ्य है कि पिछले दशक में, 2018 कांग्रेस पार्टी के लिए सबसे अच्छा वर्ष था। एक तथ्य यह भी है कि यह एकमात्र पूर्ण वर्ष था, जिसमें राहुल गांधी पार्टी के अध्यक्ष थे।’ आपको बता दें कि राहुल गांधी दिसंबर 2017 में अपनी मां सोनिया गांधी के उत्तराधिकारी के रूप में कांग्रेस अध्यक्ष बने थे। मई 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के केवल 52 सीटें जीतने पर उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। राहुल गांधी ने आम चुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन के लिए व्यक्तिगत जिम्मेदारी ली। उनके इस फैसले ने सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष के रूप में कांग्रेस की कमान संभालने के लिए मजबूर किया। हालांकि, राहुल गांधी के वफादारों का कहना है कि जिस तरह पार्टी ने 2018 में प्रदर्शन किया, उसको ध्यान में रखें तो वह फिर से अध्यक्ष बनने लायक हैं। 
कांग्रेस के जो नेता इससे सहमत हैं, वे कहते हैं कि राहुल गांधी ने 2017 के गुजरात चुनावों में पार्टी का नेतृत्व किया और जीत के बेहद करीब ले गए। बता दें कि 182 सीटों वाली गुजरात विधानसभा में, कांग्रेस ने 77 और भाजपा ने 99 सीटें जीती थीं। बीते दो दशक में गुजरात में भारतीय जनता पार्टी के लिए यह सबसे मुश्किल चुनाव था। कांग्रेस के सामने एक नई चुनौती की यह भावना 2014-17 के बीच आई, जब उसने महाराष्ट्र और केरल में सरकारें गवां दीं। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम जैसे कई गठबंधन सहयोगियों को खो दिया। लेकिन गुजरात को एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखते हुए, चक्रवर्ती जैसे नेताओं का तर्क है कि वहां कांग्रेस ने एक नई ऊर्जा का अनुभव किया और यह एक नई पहल थी। उदाहरण के लिए, शशि थरूर के नेतृत्व में प्रोफेशनल कांग्रेस की शुरुआत हुई, जिसका उद्देश्य पार्टी में नए और युवा चेहरों को शामिल करना था।
 कांग्रेस को अपनी सोशल मीडिया टीम और डेटा एनालिटिक्स टीम भी मिली।राहुल गांधी के वफादारों का कहना है कि उनके अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद यह सब बिखर गया। सुष्मिता देव और कई अन्य युवा नेताओं ने पार्टी छोड़ दी। पार्टी का चुनावी प्रदर्शन लगातार खराब होता गया। हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में वह 5 में से एक भी राज्य जीतने में विफल रही। कांग्रेस 23 समूह के सदस्य और आलाकमान के सबसे मजबूत आलोचकों में से एक कपिल सिब्बल से इस मुद्दे पर बात की, लेकिन उन्होंने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। उन्होंने पार्टी के अन्य सहयोगियों के तर्क को त्रुटिपूर्ण पाया।
 कपिल सिब्बल का कहना है कि राहुल गांधी की टीम के लिए 2019 के आम चुनावों को अलग करते हुए यह दावा करना अनुचित है कि 2018 का प्रदर्शन उनके नेतृत्व को दर्शाता है। एक कांग्रेस नेता ने बताया, ‘पंजाब, तमिलनाडु और केरल में 72 लोकसभा सीटें हैं, और हां, आप कह सकते हैं कि जिन 53 ने यूपीए को वोट दिया, वह राहुल गांधी के लिए था। हालांकि, आपको यह भी स्वीकार करना होगा कि अन्य राज्यों ने उनके खिलाफ मतदान किया। आप आंकड़ों को अपनी सुविधा के अनुसार नहीं प्रस्तुत कर सकते। राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में कांग्रेस की जीत का श्रेय, राहुल गांधी के नेतृत्व की बजाय सत्ता विरोधी लहर को दिया जा सकता है।’