पटना । जनता दल यूनाइटेड के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री रामचंद्र प्रसाद सिंह की सियासी तकदीर पर फिलहाल खतरा मंडरा रहा है। जेडीयू में कभी सीएम नीतीश कुमार के बाद दूसरे नंबर के नेता माने जाने वाले आरसीपी को पार्टी से निकल जाने पर मजबूर कर दिया गया। यह मामला कुछ ऐसा है, जैसा 17 साल पहले आरजेडी में हुआ था। तब लालू यादव के बेहद करीबी और सबसे विश्वासपात्र कहलाने वाले रंजन यादव के साथ जो हुआ, जदयू में आरसीपी के साथ हुई वही हो रहा है। यह इत्तेफाक की बात है, दोनों का नाम 'आर' से शुरू होता है और दोनों ही नेता अपनी-अपनी पार्टियों में लंबे समय तक सेकेंड मैन की भूमिका में मजबूती के साथ रहे। इतना ही नहीं राजद और जदयू दोनों के नेतृत्वकर्ता लालू यादव और नीतीश कुमार 1970 में जयप्रकाश नारायण के समाजवादी आंदोलन से निकले। बाद में ईगो की टकराहट की वजह से नीतीश और लालू अलग हो गए और दोनों ने अपने दल के सेकंड मैन को खतरा महसूस करते हुए निकाल दिया।
राजद सुप्रीमो लालू यादव ने आरसीपी की तरह पूर्व सांसद रंजन यादव को दल से निकालने से पहले राजनीतिक रूप से छोटा कर दिया। रंजन यादव दो बार राज्यसभा सांसद बने और एक बार (2009-14) लोकसभा सदस्य रहे। लालू यादव से मतभेद की वजह से रंजन यादव को राजद छोड़कर एलजेपी में जाना पड़ा। कुछ ही दिनों में जेडीयू में चले गए। 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने लालू प्रसाद यादव को पाटलिपुत्र सीट से हरा दिया। 2015 में रंजन यादव तब बीजेपी में आ गए जब नीतीश कुमार ने लालू यादव से हाथ मिला लिया। रंजन यादव ने आरजेडी के साथ जाने से साफ मना कर दिया।