नई दिल्ली । समलैंगिक शादियों को मंजूरी देने की मांग को लेकर दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है। केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने गुरुवार को लगातार दूसरे दिन याचिकाकर्ताओं की दलीलों का जवाब दिया। इस दौरान उन्होंने कहा कि समलैंगिक शादियों को मान्यता देने के मामले में व्यवहारिक और कानूनी सहित तमाम अड़चन हैं। इतना ही नहीं उन्होंने याचिकाकर्ताओं द्वारा दिए गए पति और पत्नी की जगह जीवनसाथी यानी स्पाउस शब्द के इस्तेमाल वाले सुझाव का भी विरोध किया। उन्होंने तलाक, घरेलू हिंसा, भरण पोषण प्रावधानों में आने वाली अड़चनों का भी जिक्र किया।
सीजेआई ने सॉलिसिटर जनरल मेहता से कहा, आपका कहना है कि पति या पत्नी के लिए जीवनसाथी (स्पाउस) शब्द का इस्तेमाल करने से कोई फायदा नहीं होगा। दरअसल, समलैंगिक शादियों की मांग को लेकर याचिकाएं दाखिल करने वालों की ओर पेश वकील मुकुल रोहतगी ने कहा था, कानूनी अड़चनों के मद्देनजर कानून में पति और पत्नी की जगह जीवनसाथी शब्द का इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे संविधान की प्रस्तावना और अनुच्छेद 14 के मुताबिक समानता के अधिकार की भी रक्षा होती रहेगी। 
इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा, तलाक से संबंधित अनुभाग को देखें, क्या इस विशेष वर्ग में तलाक का कानून भी सभी लोगों के लिए एक बन सकता है? ट्रांस मैरिज में कौन पत्नी होगा, गे मैरिज में कौन पत्नी होगा? इसका दूरगामी प्रभाव होगा। यह देश भर में बहुत से लोगों को प्रभावित करता है। 
मेहता ने कहा, मौजूदा कानून में पत्नी गुजारा भत्ता मांग सकती है, लेकिन समलैंगिक शादियों में क्या होगा? इस पर जस्टिस कोहली ने कहा, लेकिन यह दूसरे पर भी लागू होता है। हमारे पास याचिकाएं आती हैं कि पति भी भरण-पोषण का दावा कर सकता है। इस पर मेहता ने कहा, कपल कोर्ट को कैसे बताएगा कि पत्नी कौन है? यह कैसे स्पष्ट होगा?
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल ने कहा, शादी का रजिस्ट्रेशन कभी अनिवार्य नहीं रहा। वहीं, इस पर सीजेआई ने कहा, शादी का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है, लेकिन रजिस्ट्रेशन नहीं कराने से विवाह शून्य नहीं होता। अगर मैं गलत हूं, तब बताएं। वहीं, इस पर मेहता ने कहा, हममें से कई लोगों ने अपनी शादी का पंजीकरण नहीं कराया है, क्योंकि विवाह अधिनियम के तहत यह अनिवार्य नहीं है। इस पर जस्टिस भट्ट ने कहा, तमिलनाडु में इस अनिवार्य कर दिया गया है। वहीं, सीजेआई ने कहा, वीजा के लिए शादी के रजिस्ट्रेशन की जरूरत पड़ती है। 
कोर्ट में सुनवाई के दौरान मेहता ने घरेलू हिंसा, भरण पोषण प्रावधानों का भी जिक्र कर कहा, इन मामलों में महिलाओं के लिए विशिष्ट प्रावधान किए गए हैं। इस दौरान मेहता ने रेप की परिभाषा का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने कहा कि इसके मुताबिक, एक पुरुष ही महिला का रेप कर सकता है। 
इस पर जस्टिस भट्ट ने कहा, क्या आप ये कह रहे हैं कि अगर कोई व्यक्ति किसी गे व्यक्ति का रेप करता है, तब ये रेप नहीं होगा? सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा, यह 377 के तहत आता था, जो अब खत्म हो गई है। 
एजी मेहता ने दहेज हत्या या घरेलू हिंसा के मामले में गिरफ्तारी की प्रक्रिया का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने कहा, अगर कानून में पति और पत्नी की जगह सिर्फ स्पाउस या पर्सन कर दिया जाए, तब महिलाओं को सूर्यास्त के बाद गिरफ्तार न करने जैसे प्रावधान कैसे लागू हो सकते हैं। 
सॉलिसिटर जनरल ने कहा, इस मामले में व्यवहारिक, कानूनी और बच्चा गोद लेने, मेंटेनेंस, डोमिसाइल सहित कई अड़चनें हैं। मेहता ने कहा, याचिकाकर्ता का मौलिक तर्क है कि सेक्सुअल ओरिएंटेशन को चुनना सही है। इस पर सीजेआई ने कहा, ऐसा नहीं है। उनका कहना है कि उन्हें सेक्सुअल ओरिएंटेशन का अधिकार दिया जाए। 
एक और हवाला देकर मेहता ने कहा कि अगर गोद लिए बच्चे की कस्टडी एक मां के पास जाती है, तब देखना होगा कि मां कौन है! मां वह होगी जिसे हम समझते हैं और विधायिका ने भी वही समझा है। लेकिन इन मामलों में यह कैसे तय होगा?
केंद्र का पक्ष सुप्रीम कोर्ट में रखते हुए सॉलिसीटर जनरल ने कहा, ये एक सामाजिक मुद्दा है। अदालत को इस विचार करने के लिए संसद पर छोड़ देना चाहिए।