दूसरे का मान रखते हुए हम सम्मान अर्जित कर लें, इसमें गहरी समझ की जरूरत है। होता यह है कि जब हम अपनी सफलता, सम्मान या प्रतिष्ठा की यात्रा पर होते हैं, उस समय हम इसके बीच में आने वाले हर व्यक्ति को अपना शत्रु ही मानते हैं। महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए मनुष्य सारे संबंध दांव पर लगा देता है। आज के युग में महत्वाकांक्षी व्यक्ति का न कोई मित्र होता है, न कोई शत्रु। उसे तो सिर्फ अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति करनी होती है। हर संबंध उसके लिए शस्त्र की तरह हैं। लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो दूसरे की भावनाओं, रिश्ते की गरिमा और सबके मान-सम्मान को ध्यान में रखकर अपनी यात्रा पर चलते हैं। हनुमानजी उनमें से एक हैं। सुंदरकांड में एक प्रसंग है। हनुमानजी और मेघनाद का युद्ध हो रहा था। मेघनाद बार-बार हनुमानजी पर प्रहार कर रहा था, लेकिन उसका नियंत्रण बन नहीं रहा था। तब उसने हनुमानजी पर ब्रह्मास्त्र का प्रहार किया। हनुमानजी को भी वरदान था कि वह किसी अस्त्र-शस्त्र से पराजित नहीं होंगे। उनका नाम बजरंगी इसीलिए है कि वे वज्रांग हैं। जिसे कह सकते हैं स्टील बॉडी।   
जैसे ही शस्त्र  चला, हनुमानजी ने विचार किया और तुलसीदासजी ने लिखा -  
ब्रह्मास्त्र तेहि सांधा कपि मन कीन्ह बिचार।   
जौं न ब्रह्मासर मानउं महिमा मिटइ अपार।।  
अंत में उसने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया, तब हनुमानजी ने मन में विचार किया कि यदि ब्रह्मास्त्र को नहीं मानता हूं तो उसकी अपार महिमा मिट जाएगी। यहां हनुमानजी ने अपने पराप्रम का ध्यान न रखते हुए, ब्रह्मजी के मान को टिकाया। दूसरों का सम्मान बचाते हुए अपना कार्य करना कोई हनुमानजी से सीखें।