किसी भी काम में लगन का अपना महत्व होता है, सफलता आपकी एकाग्रता पर ही निर्भर करती है। आप संसार को पाने की दौड़ में हो या परमात्मा को, जब तक हम ध्यान लगाकर काम नहीं करेंगे कभी ठीक परिणाम नहीं मिलेगा। इसके लिए जरूरी है कि आप पहले अपने मन को एकाग्र करें, फिर सफलता खुद आपको मिल जाएगी। 
एक बार की बात है। राजा एक बार युद्ध पर गया। शाम के समय युद्ध के बाद राजा अपने युद्ध के बाद शिविर से थोड़ी दूर जाकर एक वीरान स्थान पर ध्यान लगाकर बैठ गया ताकि उसे थोड़ी शांति मिल सके। अभी राजा नदी के किनारे पर बस ध्यान की मुद्रा में बैठा ही था। वहां से एक युवती दौड़ती हुई निकली, जिसका ध्यान उस ओर तक ना गया कि राजा बैठा है। ना जाने कहां जाने की जल्दी थी। वह राजा से टकराती हुई निकल गई। राजा का ध्यान भंग हो गया उसे बहुत गुस्सा आया। उसने तुरंत शिविर मैं लौटकर आदेश दिया। उस औरत को ढूंढ कर लाया जाए जिसने ये गुस्ताखी की है। उस युवती को इतना भी नहीं दिखा कि देश का राजा ध्यान में बैठा है और वह उसे कुचलती हुई चली जा रही है। 
सिपाही गए और थोड़ी ही देर में उस युवती को पकड़कर ले आए। राजा ने उस युवती से कहा- बदतमीज लड़की इतना भी नहीं जानती कि ध्यान में बैठे हुए व्यक्ति को इस तरह धक्का लगाकर उसका ध्यान भंग करना कितना बड़ा पाप है। उस युवती ने राजा को पहले ऊपर से नीचे तक देखा और कहा - आपको धक्का लगा जरूर होगा लेकिन मुझे याद नहीं। मैं अपने प्रेमी से मिलने जा रही थी। मुझे कुछ नहीं पता कि आप कहां ध्यान लगा रहे थे लेकिन मुझे आश्चर्य होता है कि मैं तो अपने प्रेमी से मिलने जा रही थी। 
मेरा ध्यान सिर्फ अपने प्रेमी से मिलने पर केंद्रित था। मुझे पता ही नहीं चला कि आप परमात्मा के ध्यान में बैठे हैं। आपको मेरा पता चल गया? राजा को उसकी बात समझ आ गई और उसने उसे छोड़ दिया। क्योंकि यह साबित हो गया थी कि राजा के मन में वह समर्पण का भाव नहीं था जो उस प्रेमिका में था। उसके प्रेम में वह तीव्रता और वलंतता थी जिसने राजा को सोचने पर मजबूर कर दिया।