होली का त्यौहार नजदीक है और रंग इस त्यौहार का महत्वपूर्ण हिस्सा है। छत्तीसगढ़ के गांव में गुलाल बनाने की परंपरा रही है। मगर पहली बार गुलाल बनाने में गोबर का इस्तेमाल हो रहा है। वेस्ट से कुछ बेस्ट बनाने की सोच के साथ इस नए किस्म के गुलाल को तैयार करने की शुरुआत हुई। रायपुर की सामाजिक संस्था एक पहल के रितेश अग्रवाल बोरियाखुर्द इलाके में गौशाला चलाते हैं। यहां से निकलने वाले गोबर का इस्तेमाल गुलाल तैयार करने में किया जा रहा है। इतना ही नहीं शहरभर के मंदिरों और शादी भवनों से निकलने वाले वेस्ट फूलों से इस गुलाल की महक को बढ़ाया जा रहा है।

एक पहल संस्था के रितेश खांडे ने बताया कि गुलाल बनाने की इस पूरी प्रक्रिया में 5 से 6 दिन का वक्त लगता है। गोबर के कंडे को सुखाया जाता है, इसके बाद इसे बारीक पाउडर की तरह एक मशीन में पीस लिया जाता है। इसी मशीन में सूखे हुए फूलों को भी पीसा जाता है और इस पाउडर में कस्टर्ड पाउडर और खाने के रंग मिलाकर गुलाल तैयार किया जाता है। इस गुलाल को तैयार करने वाले मानते हैं कि यह केमिकल फ्री है, क्योंकि इसे तैयार करने की प्रक्रिया में किसी भी तरह के रसायन का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। गुलाल में गोबर का इस्तेमाल सुनने में जरा अजीब लग सकता है। मगर गांव में ऐसे लोग जो मवेशियों को पालते हैं या मवेशियों की वजह से ही जिनकी आमदनी होती है वह होली के वक्त मस्ती के लिए गोबर से होली खेलते हैं। यह परंपरा भी रही है। गौठान में गोबर वाला गुलाल बनाने की प्रक्रिया से जुड़े रितेश ने बताया की गोबर से होली खेलने की परंपरा का नया स्वरूप ही गोबर वाला गुलाल है। गोकुल नगर में स्थित गौठान में आकर इस गुलाल के पैकेट भी लोग खरीद सकते हैं। जि कीमत 50 से 100 के आसपास है।