रायपुर ।  आदिवासी समाज का आरक्षण 32 प्रतिशत से 22 प्रतिशत करने पर कांग्रेस और भाजपा के बीच आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो गया है। भाजपा ने अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण में कटौती पर भूपेश सरकार पर हमला बोला है तो कांग्रेस ने पलटवार करते हुए कहा कि इसके लिए पूर्व की भाजपा सरकार जिम्मेदार है। भाजपा के वरिष्ठ नेता नंदकुमार साय, पूर्व मंत्री केदार कश्यप, पूर्व मंत्री लता उसेंडी और अनुसूचित जनजाति मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष विकास मरकाम ने कहा कि आदिवासी समाज आरक्षण कम होने से आक्रोशित है, इसलिए आठ अक्टूबर को बस्तर, सरगुजा और दुर्ग संभाग में राजमार्गों को जाम करके धरना दिया जाएगा। इसके अलावानौ से 12 अक्टूबर तक जनजाति समाज केबीच ग्राम संपर्क अभियान चलाकर आरक्षण फिर बढ़ाने के लिए हस्ताक्षर अभियान चलाया जाएगा।13 से 18 अक्टूबर तक मध्य बस्तर और सरगुजा संभाग की कांग्रेस के जनजाति विधायकों के निवास कार्यालयों का घेराव किया जाएगा। दीपावली के बाद भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा ब्लाक स्तर पर बाइक रैली निकालकर प्रदर्शन करेंगे। जब तक आदिवासी समाज को 32 प्रतिशत आरक्षण नहीं मिल जाता तब तक भाजपा आंदोलन करती रहेगी। साय ने कहा कि भाजपा ने आदिवासियों की मांगों को देखते हुए वर्ष 2012 में अनुसूचित जनजाति आरक्षण 20 प्रतिशत से बढ़ाकर 32 प्रतिशत तक किया था। कांग्रेस सरकार ने इसे 20 प्रतिशत कर दिया है। यह आदिवासियों के साथ छल है। कश्यप ने कहा कि प्रदेश की कांग्रेस सरकार को आदिवासी समाज की कोई चिंता नहीं है।

आरक्षण की कटौती के लिए रमन सिंह और भाजपा दोषी : कांग्रेस

भाजपा के आरोपों पर कांग्रेस ने भी तीखा हमला किया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा कि अनुसूचित जनजाति वर्ग के आरक्षण में कटौती की दोषी पूर्ववर्ती रमन सरकार है। कांग्रेस आदिवासी समाज के सामने भाजपा की इस बदनीयती को बेनकाब करेगी। उनको बताएगी रमन सरकार ने जानबूझकर ऐसा फैसला लिया था, जो कोर्ट में रद हो जाये। कांग्रेस सरकार बिलासपुर उच्च न्यायालय के निणर््ाय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस आदिवासी समाज के हितों के कानूनी लड़ाई लड़ेगी। हमें पूरा-पूरा भरोसा है राज्य के आदिवासी, अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग सभी के साथ न्याय होगा। उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण का लाभ मिलेगा। उन्होंने कहा कि रमन सरकार ने यदि 2012 में बिलासपुर कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किए गए मुकदमे में सही तथ्य रखे होते और 2011 में आरक्षण को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 58 प्रतिशत करने के समय दूसरे वर्ग के आरक्षण की कटौती के खिलाफ निर्णय नहीं लिया होता। आरक्षण की सीमा 50 से बढ़कर 58 हो ही रही थी तो उस समय उसे 4 प्रतिशत और बढ़ा देते सभी संतुष्ट होते कोर्ट जाने की नौबत नहीं आती और न आरक्षण रद्द होता।