नई दिल्ली | बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक की जांच करने वाली शिक्षा, महिला, बच्चे, युवा और खेल संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने अपनी पहली बैठक आयोजन किया बुधवार को किया। विधेयक को शीतकालीन सत्र के दौरान लोकसभा में पेश किया गया था। भाजपा सांसद विनय सहस्रबुद्धे की अध्यक्षता में बुधवार को हुई समिति की 31 सदस्यों की संख्या में से सिर्फ छह सदस्य शामिल हुए। सूत्रों ने बताया कि समिति ने विधेयक के संबंध में जनता की सिफारिश पर चिंता व्यक्त की। दिलचस्प बात यह है कि पैनल को करीब 95,000 ईमेल मिले और इनमें से 90,000 ईमेल बिल का विरोध कर रहे थे। इस समिति, पैनल को अब 24 जून तक अपनी रिपोर्ट देनी है।

इससे पहले सांसद सुष्मिता देव संसदीय पैनल की एकमात्र महिला सदस्य हैं जो बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक की जांच करेंगी, जिसमें महिलाओं की कानूनी शादी की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल करने की, की गई है। संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने लोकसभा में इस बिल को पेश किया। फिर इसे जांच के लिए 31 सदस्यीय समिति के पास भेजा गया।

गौरतलब है कि पुरुषों और महिलाओं के लिए न्यूनतम विवाह योग्य आयु में समानता विधेयक में महिलाओं के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 18 से बढ़ाकर 21 करने का प्रस्ताव है।

उल्लेखनीय है कि देश में लड़कियों की शादी की उम्र को लेकर काफी लंबे समय से बहस होती रही है। आजादी से पहले बाल विवाह प्रथा को रोकने के लिए देश में अलग-अलग न्यूनतम उम्र तय की गई। 1927 में शिक्षाविद, न्यायाधीश, राजनेता और समाज सुधारक राय साहेब हरबिलास सारदा ने बाल विवाह रोकथाम के लिए एक विधेयक पेश किया। विधेयक में शादी के लिए लड़कों की उम्र 18 और लड़कियों के लिए 14 साल करने का प्रस्ताव था। उसके बाद 1929 में जो कानून बना उसे सारदा एक्ट के नाम से जाना जाता है। फिर 1978 में इस कानून में संशोधन कर लड़कों की शादी की न्यूनतम उम्र 21 और लड़कियों के लिए 18 साल कर दी गई। अब फिर एक बार यह कानून बदलाव की प्रक्रिया में है।