इस्लामाबाद । कंगाल पाकिस्तान में बिजली बचने की कोशिश शुरु हो गई है। इसी कड़ी में पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ने बैठक के बाद बिजली बचाने के नए प्लान की घोषणा की है। आर्थिक रूप से बदहाल पाकिस्तान में ऊर्जा संकट गहरा गया है। इससे आम लोगों से लेकर हर वर्ग परेशान है। संकट कितना गहरा यह जताने के लिए सरकार ने एक दिन पहले ही कैबिनेट की बैठक भी बगैर लाइट जलाए की। साथ ही शाहबाज सरकार ने ऊर्जा बचत के लिए एक विस्तृत प्लान तैयार किया है। सरकार का कहना है कि ऐसा करने से 6200 करोड़ रुपए की बचत होगी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पाकिस्तान के बिजली विभाग पर सितंबर 2021 तक 2 लाख 25 हजार करोड़ रुपए का कर्ज था। जो साल 2022 में बढ़कर 2 लाख 43 हजार करोड़ रुपए हो गया है।
बिजली संकट बढ़ने से लोगों से लेकर ट्रेड यूनियन में आक्रोश है। ज्यादातर व्यापारियों ने ऊर्जा बचत योजना का विरोध किया है। इस्लामाबाद में ट्रेड यूनियन ने इस योजना को लागू नहीं करने का फैसला किया है। ट्रेड यूनियन के प्रतिनिधि नोमान अब्बास ने कहा गरीब और गरीब होता जा रहा है और कारोबार पहले ही खत्म होने की कगार पर है। मैं पाक सरकार से पूछना चाहता हूं कि क्या वे रैलियों में इस्तेमाल होने वाले विमानों और हेलीकॉप्टरों को रोकेंगे? इन्हें रोकने से भी अरबों रुपए बच सकते हैं। बलूचिस्तान में 10-12 घंटे तकजबकि खैबर पख्तूनख्वा में भी लोगों को 6 से 12 घंटे तक बिजली कटौती का सामना करना पड़ रहा है।
बिजली बचाने के प्लान का पाकिस्तान में विरोध शुरू हो गया है। वहां के पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा प्रांत की सरकार की इस योजना को मानने से इंकार कर दिया है। दोनों प्रातों में इमरान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए- इंसाफ की सरकार है। इसलिए बिजली बचाने के फैसले का पालन नहीं करने के पीछे राजनीतिक वजहें मानीं जा रही हैं।
पाकिस्तान में बिजली संकट की मुख्य कारण आर्थिक बदहाली है। दरअसल पाकिस्तान के ज्यादातर पॉवर प्लांट में तेल के जरिए बिजली पैदा की जाती है। इन पॉवर प्लांट में इस्तेमाल होने वाले तेल को विदेश से आयात किया जाता है। यूक्रेन युद्ध के बाद दुनिया भर में तेल की कीमत में दोगुने से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है। इस वक्त पाकिस्तानी रुपए की वैल्यू 226.67 रुपए प्रति डॉलर तक पहुंच गई है। इसके बाद सरकार तेल का आयात कम से कम करना चाहती है। पीएम शहवाज शरीफ ने खुद ये बात कही थी कि पाकिस्तान सरकार के खजाने में इतना पैसा नहीं है कि हम तेल और गैस दूसरे देशों से खरीद सकें।